हर शख्स जब जन्नत नसीब होने की हसरत रखता है,
फिर हर पल मौत की आहट से वो क्यूँ डरता है ?
ज़िन्दगी जीने का दम जब वो खुल कर भरता है,
फिर अपने इसी दम से उसका दम आखिर क्यूँ घुटता है ?
जब पाक साफ़ दामन रखने की आदत वो पालता है,
फिर अपनी इसी आदत से अक्सर वो समझोता क्यूँ कर बैठता है ?
रफाकत और अदावत भरी, दोनों जिंदगियां जब वो जीता है,
तो फिर क्यूँ अपनी इसी पहचान पर गुमनामी का लबादा वो ना चाहते हुए भी ओड लेता है....?
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