चली जब हवाएं इस सर्द मौसम की,
नफरत की सब राहें बिछड़ गयी.
उड़ी जब जुल्फें बरसते बादल की,
इस दिल की सभी रंजिशें भी पिगल गयी.
मोहब्बत के किस्से तो अब तक सुनते आये थे,
लेकिन जब देखा तो यह आहें भी फिसल गयी.
अब क्या सूरत और क्या सीरत,
मोहब्बत के कूचे तले दुश्मन निगाहें भी संभल गयी.
इश्क बला ही शायद ऐसी है,
जिसकी रौशनी से डर कर हर साज़िश भी किनारे से गुज़र गयी...
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