हर गली में खड़ी है मौत,
हर चौराहे पर कर रही है इंतज़ार.
पता नहीं कब आयेंगे जानिब साहब,
वो सर झुकाए बैठी है हर ओर.
चप्पा-चप्पा जुदा नहीं है उससे,
वो मौत है, हर इलाके का वास्ता है अब उससे,
अब क्या आतंक और क्या दहशत,
हर इलाके में गूंजती, हर गूँज है अब उससे.
वो हुक्मरान भी है और पनाहगार भी,
दुनिया की हर आदत, हर इबारत अब है, तो सिर्फ उससे....
No comments:
Post a Comment