Tuesday 24 March 2009

आतंकवाद से लड़ाई...

जब जली बेवजह चिताएं, तब उठे क्रोध के स्वर.
कहा अपने भाई-बहनों का खून, अब नहीं है बेवजह सड़कों पर बर्दाश्त.
कहते हैं आतंकवाद से मिलकर लड़ेंगे हम, एकजुट होकर चलेंगे हम,
..क्योंकि हम सब, सब एक हैं हम.

क्रान्ति का ये नया दौर, लोकतंत्र का कैसा है ये शोर,
जो फैल रहा है चारों ओर.
किसी नेता की सभा नहीं, रैली नहीं,
ये तो है आम जनता और उसकी बनाई हुई एक ज़बरदस्त सोच.

कहते हैं एक जुट होकर चलेंगे हम, आतंकवाद से मिलकर लड़ेंगे हम,
बस बहुत हो गया, अब और नहीं सहेंगे हम,
आपने भाई-बहनों के इस कीमती खून को अब नहीं बहने देंगे हम.
ज्यादा नहीं बस इतना चाहते हैं हम,
आतंकवाद की ये गन्दी ज्वाला हो जाये हमेशा-हमेशा के किये ख़त्म.

बच्चे क्या तो बड़े क्या, इस क्रांति में शामिल हैं सब,
हिन्दू भी हैं मुस्लिम भी है, सब चाहते हैं आतंकवाद हो ख़त्म.
सुबह हो या रात हर वक़्त जारी है संघर्ष,
जनता के इन नारों के साथ चल रही है आतंकवाद से जंग.


हर घर से आया है एक और आई है एक मोमबत्ती,
नाजाने कितने नारों के साथ उठेंगी आज आवाज़ें सभी.
कहेंगी भूल ना जाना उनका तुम, जिनके ख़ातिर आज खड़े हैं, भारत की इस धरती पर हम.
वन्दे मातरम...वन्दे मातरम...वन्दे मातरम...

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