Friday 20 March 2009

यूपी की चुनावी बयार...



सुश्री मायावती उर्फ़ बहनजी के नाम से प्रसिद्ध देश की पहली दलित मुख्यमंत्री का राज्य में अच्छा ख़ासा वर्चस्व कायम है...बहनजी को चाहे दलितों की मसीहा कहा जाता हो...लेकिन कब बहनजी दुर्गा से चंडी का रूप अख्तियार कर लेती हैं...इसका तो किसी को अंदाज़ा भी नहीं है...2007 यूपी विधानसभा चुनावों में बहुमत से आयी बसपा सरकार ने सबसे पहले प्रदेश भर में फै़ले भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का संकल्प लिया...जिसके तहत धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में सख्ती का माहौल छा गया...बड़े माफियाओं की दुकानों पर तो जैसे ताले ही लग गये हों...प्रदेश के कई कुख्यात अपराधी या तो मारे गये या तो पकड़े गये...और जो पुलिस के हथे नहीं चढ़ सके...वे प्रदेश छोड़कर ही भाग उठे...हालांकि प्रदेश में बढ़ते गुण्डाराज को कम करने में तो माया की हर एक कोशिश कामयाब रही...लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उठे बसपाई नारे धरे के धरे ही रह गये...जो स्थिति बहनजी की सरकार से पहले थी...वे आज भी क़ायम है...जहां एक और भ्रष्टाचार अभी भी अपनी चरम सीमा पर था...वहीं चारों और मंदी अपने पैर पसार रही थी...इन्हीं सब कारणों के चलते जनता तो मानो जैसे झुलस ही उठी हो...हाल ही में हुए किसान आन्दोलन ने जहां एक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्रोध के स्वरों को व्यापक किया..तो वहीं इसका परिणाम प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी देखने को मिला...प्रदेश के पूर्वी भाग में भी आन्दोलन का असर देखने को मिला...प्रदेश की गन्ना मिलें तो मानो जैसे जंग की चपेट में आ गयी हों...मिलों को देख ऐसा लगता था कि जैसे सदियों से मिलों में कोई काम ना हुआ हो...कुछ समय बाद जब किसानों का आन्दोलन थमा...तो अपराध ने अपने पैर फिर से फ़ैलाने शुरु किये...कई खूनी रंजिशों ने समाज में अपनी जगह बनायी...और अपराध ने प्रदेश को अपने रंग में एक बार फिर से रंग डाला...औरैया इंजीनियर हत्याकाण्ड की गूंज तो दिल्ली तक भी गयी...वहीं आरूषी हत्याकाण्ड तो कई महीनों तक राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में छाया रहा...धीरे-धीरे समय बीता तो सभी मामले शान्त भी हुए...पर अपराध ने कम होने का नाम ना लिया..आखिरकार में यूपी के इतिहास के काले पन्ने में दर्ज़ एक ऐसा मुद्दा फिर से उठा...जिसके साथ शुऱु हुई पंद्रहवीं लोकसभा की चुनावी बयार...कल्याण सिंह जो आजतक हिन्दू होने के बुलन्द नारे लगाया करते थे...वे आज अमर सिंह के साथ इमामबाड़ों की ख़ाक़ छान रहे हैं...बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह के सपा में शामिल होने से...कांग्रेस को काफ़ी चोट पहुंची और उसने भी अपनी तारणहार सपा पार्टी को पीठ दिखानी शुरु कर डाली...चुनावों का मौसम तो शुरु हो ही चुका था...तो अब क्या...बारी थी दलबदलुओं की...पिछले पांच सालों से अपने दुखों को समेटे कूद पड़े चुनावी गलियारों में...और तोड़ डाली पूरानी दोस्ती और बना डाले नये यार...अब चाहे चुनाव जीते या ना जीते...लेकिन अपनी पूराने साथियों को तो हार का मूंह दिखाना ही दिखाना है...
पंद्रहवीं लोकसभा चुवानों की तारीखों के साथ-साथ आचार संहिता भी लागू हुई...अब खेल शुरु हुआ वोटरों को लुभाने का...तो कहीं नोट बटें...तो कहीं सांप्रदायिक नारों की हुई बौछार...राजनीति में उभरते एक और गांधी ने शायद ये दिखाने की कोशिश की वे अपने साथ-साथ भारत का इतिहास भी लेकर चलते हैं...पंजे से गले तक पहुंचने वाले ये युवा कुछ अलग मिजाज़ के हैं...कहते हैं हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए वे सबसे आगे खड़े हैं...लेकिन हिन्दू धर्म असुरक्षित कब हुआ...इस सवाल के सामने वे नतमस्तक होते दिखे...वरूण गांधी को शायद लग रहा होगा की उनके ये भड़काऊ भाषण उन्हें आगामी लोकसभा चुनावों में पीलीभीत सीट पर आसीन करवायेंगे...अब चाहे धर्मनिरपेक्ष नेता वो बन पाये ना बन पाये...लेकिन चर्चित नेता बनने की चाहत तो उनकी पूरी हो ही गयी है...आगामी लोकसभा चुनावों के लिए यूपी में जहां सपा-बसपा में इस बार कांटे की टक्कर होने वाली है...तो वहीं देश की सबसे बड़ी पार्टियां अपनी ज़मीन तलाशने में एक बार फिर से जुट गयी हैं...भाजपा में इस बार मायूसी का माहौल आराम से देखने को मिल रहा है...जहां वाजपेयी जी की कमीं टंडन जी पूरी करने की तमन्ना रखते हैं...तो वहीं बॉलीवुड सुपर स्टार को सुप्रीप कोर्ट की हरी झंडी मिलने के इंतज़ार ने व्याकुल कर रखा है...पूर्वांचल के कदावर नेता यानि हिन्दूवादी योगी आदित्यनाथ हालांकि ऊपरी तौर पर गोरखपुर से इस बार भी अपनी जीत सुनिश्तिच करने का परचम लहरा चुके हैं...लेकिन कहीं ना कहीं सपा के मनोज कार्ड ने उन्हें परेशान अवश्य कर रखा है...इन्हीं सब के बीच दलितों की मसीहा बहनजी भी विधानसभा की तरह लोकसभा में भी अपनी पार्टी का भविष्य देख रही हैं..और मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने का सपना साकार करने की जद्दोजहद में जुटी गयी हैं..यूपी की इस चुनावी बयार में कौन कहां बाज़ी मार पायेगा और कौन कहां अपनी ज़मानत ज़प्त कराएगा...इसका इंतज़ार तो हर किसी को है...

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