एक पुरानी कहावत है...दो की लड़ाई में फ़ायदा हमेशा तीसरे को ही होता है...दोनों लड़ते...झगड़ते हैं...और करवा बैठते हैं अपना नुकसान...दोनों की इस कभी ना ख़त्म होने वाली लड़ाई का फ़ायदा औऱ मज़ा उठाते हैं बाक़ी सभी...पिछले कई सालों से इसी मिसाल और इसी कहावत पर चली आ रही है भारत की राजनीति और यहां के नेताओं की कूटनीति...कहते हैं एकजुट होकर भारत को सम्पन्न राष्ट्र बनायेंगे हम...ये कहने वाले...दो घरों के बीच बनी दीवारों को तो कभी हटा नहीं पाये...तो वे कैसे सम्पन्न राष्ट्र बनाने की बात कह सकते हैं...यही हाल है हमारे देश की लगभग सभी राजनैतिक कहलायी जाने वाली छोटी-बड़ी पार्टियां का...इस दो की लडा़ई में एक तरफ़ है कांग्रेस...तो दूसरी तरफ़ खड़ी है भाजपा...
अगर इस लड़ाई में कांग्रेस जीतती है तो फ़ायदा यूपीए को होता है...और जब भाजपा जीतती है तो फ़ायदा एनडीए को होता है...545 के भारी आंकड़े के सामने मात्र 3 का छोटा सा आंकड़ा क्या महत्व रखता है...कुछ भी तो नहीं..लेकिन फ़िर भी कई नेता इन्हीं तीन सीटों के बल-बूते पर एक राज्य के मुख्यमंत्री बनने में सफल हो जाते हैं...अब जब मात्र तीन सीटों वालों का इस मिली-जुली सरकार में इतना वर्चस्व होता है...तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि तीस से चालीस सीटों वालों का क्या रुतबा होता होगा...शायद इसीलिए टाइम-टाइम पर अमर सिंह, लालू प्रसाद जैसे तीस-चालीस सीटों वाले नेता कांग्रेस को हड़काते रहते हैं...और बार-बार सोनिया गांधी को अहसास दिलाते रहते हैं कि...उनकी इन्हीं तीस-चालीस सीटों की वजह से ही यूपीए सरकार खडी है...और सत्ता में कायम है...यही हाल दूसरी तरफ़ भाजपा का भी है...कभी शिवसेना से डांट खाती है...तो कभी जनदा दल(यूनीइटिड) से...अब बेचारी दोनों पार्टियां जाएं तो जाएं कहां...दोनों को सत्ता का सुख भी भोगना है...और एक-दूसरे की हार भी देखनी है...अब दोनों चीज़ें चाहिए तो अमर सिंह जैसे बड़े नेताओं(जो बड़े हैं नहीं..लेकिन बड़े होने का अहसास सबको दिखाना जानते हैं) के थके हुए विचारों पर अमल तो करना ही पड़ेगा...अब ऐसी स्थिति में सबसे बड़े समीकरण और सभी गठबंधन वाली सरकारों के ख़ात्मे का आग़ाज़...शायद एक नये दौर से ही हो पायेगा...और शायद वो दौर शुरु होगा यूपीए और एनडीए के ख़ात्में से...शायद वो शुरु होगा कांग्रेस और भाजपा के बेजोड़ बंधन के साथ...कहना तो कठिन है ही...लेकिन अगर ऐसा हो जाए...तो पट भी आपकी और चित भी आपकी...ना सुनने पड़ेंगे चिरकुट नेताओं के ताने और ना ही सामना करना पड़ेगा...छोटे-मोटे नेताओं की छोटी-मोटी धमकियों का...मिले-जुले विचार शायद कर पायें देश की तरक्की...शायद सामने आये सांप्रदायिकता की सबसे बड़ी और अनोखी सौहार्द...फिर नेताओं की फालतू-बकवास वाली सभाओं का हो जाएगा बंटाधार और शायद तब हमारे सामने निकल कर आयेगी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को संभालने वाली एक ज़बरदस्त और काबिल सरकार...शायद इसी बदलाव का है हम सबको बेसब्री से इतंज़ार....यही है सबसे बड़ा समीकरण और शायद यहीं कहीं छुपा है हमारे भारत का भविष्य....
No comments:
Post a Comment