Tuesday, 31 March 2009

I wished if it wouldn't be a dream

I met a girl yesterday in my dream....it was all filled wid charm & enamoured.....i was really savouring all those moments....hands in hands....it was only love in all of my vicinity....after some elite time....every thing broke out.....with so much of unconsciousness...as my mind was in the cognitive state....after settling down in few minutes....i felt like i have left behind everything....but after i was a wide awaken i stucked on a profile there in a social website...& suddenly i found the same girl last nite i dreamt off....Her pic was quite similar to the girl that nite i met with....the flash on her face was pretty same as that on the face of the girl i met that nite.....i really get dismayed....i don't know is it something hallucination or some thing like dejavu...........& then i ended up with bewilderedness...still don't have any clue, what happened that nite????

Zindagi jeene ka naam....

Zindagi ki yeh azab dor..har taraf hai shor hi shor..jaane kyun nahi chalta is par mera zor...manzilen to dikh rahi hain samne..lekin na jaane kyun nahi dikh rahe hain raaste...har ek din kuch na kuch seekh raha hun mein...zindagi ki in andheri fizaon se lad raha hun mein...yakinan ek din khul kar samne aayegi roshni...bas issi khwab ke sahare jiye ja raha hun mein...kafi kuch peeche chod diya maine...ab to bas dekhna hai sirf aur sirf aage...mere sapno ka ho chuka hai aagaz...bas intzaar hai toh anjam tak pahunchane wale sapno ka mujhe..kyunki bahut kuch khokar payi hai yeh zindagi..yeh meri zindagi..sirf meri zindagi...

A medicine i recently got....

Life is very practical..very very small things i used to listen from others...which i alwayz ignored...really all those were true...so true...that now i use to say those things to others...people use to say that..one should never have regrets..but i say that regrets are most important part...so mandatory..that it fills the gaps & heals everything from ur past till ur future...one of the best medicine i ever met with...

Tuesday, 24 March 2009

आतंकवाद से लड़ाई...

जब जली बेवजह चिताएं, तब उठे क्रोध के स्वर.
कहा अपने भाई-बहनों का खून, अब नहीं है बेवजह सड़कों पर बर्दाश्त.
कहते हैं आतंकवाद से मिलकर लड़ेंगे हम, एकजुट होकर चलेंगे हम,
..क्योंकि हम सब, सब एक हैं हम.

क्रान्ति का ये नया दौर, लोकतंत्र का कैसा है ये शोर,
जो फैल रहा है चारों ओर.
किसी नेता की सभा नहीं, रैली नहीं,
ये तो है आम जनता और उसकी बनाई हुई एक ज़बरदस्त सोच.

कहते हैं एक जुट होकर चलेंगे हम, आतंकवाद से मिलकर लड़ेंगे हम,
बस बहुत हो गया, अब और नहीं सहेंगे हम,
आपने भाई-बहनों के इस कीमती खून को अब नहीं बहने देंगे हम.
ज्यादा नहीं बस इतना चाहते हैं हम,
आतंकवाद की ये गन्दी ज्वाला हो जाये हमेशा-हमेशा के किये ख़त्म.

बच्चे क्या तो बड़े क्या, इस क्रांति में शामिल हैं सब,
हिन्दू भी हैं मुस्लिम भी है, सब चाहते हैं आतंकवाद हो ख़त्म.
सुबह हो या रात हर वक़्त जारी है संघर्ष,
जनता के इन नारों के साथ चल रही है आतंकवाद से जंग.


हर घर से आया है एक और आई है एक मोमबत्ती,
नाजाने कितने नारों के साथ उठेंगी आज आवाज़ें सभी.
कहेंगी भूल ना जाना उनका तुम, जिनके ख़ातिर आज खड़े हैं, भारत की इस धरती पर हम.
वन्दे मातरम...वन्दे मातरम...वन्दे मातरम...

Monday, 23 March 2009

आईपीएल को देश निकाला....

भारत के गृह मंत्री पी चिन्दबरम ने आईपीएल के नुमायंदों के द्वारा केन्द्र सरकार पर लगाये आरापों का खंडन करते हुए कहा कि आईपीएल सिर्फ खेल नहीं है..बल्कि खेल से बढ़कर वे अब व्यापार बन चुका है...तो क्या शायद इसीलिए आईपीएल के खेल को भारत की पीचों पर जगह नहीं मिल पाई...क्या इसी व्यापार के चलते आईपीएल को देश निकाला दे दिया गया...इस पूरे मामले से ये तो साफ़ हो ही गया है कि खेल से पहले राजनीति का नंबर है...और खेल तो मात्र एक बहाना है...सबको अपनी राजनीति को चमकाना है...अब चाहे पक्ष हो या विफक्ष...केन्द्र बिन्दु तो हमेशा एक ही रहता है...माननीय मोदी जी भी कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते हैं...हर मुद्दे में उनके बयानबाज़ी अब ज़रुरी जो हो गयी है...इन सब पचेड़ों में फंसे बेचारे खिलाड़ी भी क्या सोचते होंगे...उनका तो सारा प्रोग्राम ही सरकार ने ख़राब कर डाला...हर मैच के बाद भारतीय खिलाड़ी कुछ समय अपने परिवार के साथ जो बीताने वाले थे...अब या तो परिवार को लंडन ले चलो...या फिर दोबारा आया मौसम जुदाई का...राजस्थान में वसुंधरा सराकार के जाने के बाद से...वैसे ही आईपीएल के कमीशनर ललीत मोदी का समय ख़राब चल रहा था...पहले राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव हारे...और अब आईपीएल सीज़न-2 में भी सबसे बड़ी शिकस्त उन्हीं की हुई है...सरकार में मंत्री बैठे शरद पवार भी सरकार के इस पैंत्रे के आगे नतमस्तक हैं...शायद तभी तो अपनी चहेती बीसीसीआई की एक मात्र बोडी आईपीएल को बचाने में असमर्थ हैं...शह-मात के इस खेल में जहां भारत में कई लोगों को नुकसान होगा...तो वहीं इंग्लैंड में आईपीएल के जाते ही...वहां के काउंटी एसोसिएशन में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी है...वे तो बड़े बेचैन होकर आईपीएल की तारीख़ों का इंतज़ार अभी से करने लग गये हैं...वहीं अब आईसीसी के अध्यक्ष के मुताबिक आईपीएल के बाद होने वाले 20-20 वर्ल्ड कप पर इसका गहरा असर पड़ सकता है...क्योंकि आईपीएल के मात्र कुछ दिनों बाद ही इंग्लैंड में 20-20 विश्व कप होना पूर्व निर्धारित है...हालांकि आईपीएल एसोसिएशन ने अभी ये पक्का नहीं किया है कि वे आईपीएल सीरीज़ को इंग्लैंड में कराएंगे या कहीं ओर...इंग्लैंड के साथ-साथ साउथ अफ्रीका पर भी ललीत मोदी की नज़रें गढ़ी पड़ी हैं...अब आईपीएल जहां भी हो...लेकिन इतना ज़रुर है कि आईपीएल के इस बार के मैचिज़ काफ़ी दिलचस्प होंगे...इंग्लैंड की पीचिज़ भारत की पीचिज़ से काफ़ी अलग हैं...और साथ-साथ भारत और इंग्लैंड के मौसम में भी काफ़ी अन्तर है...लाज़मी है कि पिछले सीज़न के मुताबिक इस बार काफ़ी बदलाव देखा जाएगा...क्रिकेट के इस मिनी और रोमांचक इंवेन्ट कहे जाने वाले आईपीएल का भविष्य किस तरफ़ मोड़ खाता है...ये तो आने वाले कुछ दिनों में साफ़ हो जाएगा...लेकिन इस बड़े बदलाव के चलते कितने लोगों को नुकसान का घड़ा उठाना पड़ सकता...फिलहाल इस तरफ़ किसी की नज़र नहीं है...

Saturday, 21 March 2009

सबसे बड़ा समीकरण

एक पुरानी कहावत है...दो की लड़ाई में फ़ायदा हमेशा तीसरे को ही होता है...दोनों लड़ते...झगड़ते हैं...और करवा बैठते हैं अपना नुकसान...दोनों की इस कभी ना ख़त्म होने वाली लड़ाई का फ़ायदा औऱ मज़ा उठाते हैं बाक़ी सभी...पिछले कई सालों से इसी मिसाल और इसी कहावत पर चली आ रही है भारत की राजनीति और यहां के नेताओं की कूटनीति...कहते हैं एकजुट होकर भारत को सम्पन्न राष्ट्र बनायेंगे हम...ये कहने वाले...दो घरों के बीच बनी दीवारों को तो कभी हटा नहीं पाये...तो वे कैसे सम्पन्न राष्ट्र बनाने की बात कह सकते हैं...यही हाल है हमारे देश की लगभग सभी राजनैतिक कहलायी जाने वाली छोटी-बड़ी पार्टियां का...इस दो की लडा़ई में एक तरफ़ है कांग्रेस...तो दूसरी तरफ़ खड़ी है भाजपा...
अगर इस लड़ाई में कांग्रेस जीतती है तो फ़ायदा यूपीए को होता है...और जब भाजपा जीतती है तो फ़ायदा एनडीए को होता है...545 के भारी आंकड़े के सामने मात्र 3 का छोटा सा आंकड़ा क्या महत्व रखता है...कुछ भी तो नहीं..लेकिन फ़िर भी कई नेता इन्हीं तीन सीटों के बल-बूते पर एक राज्य के मुख्यमंत्री बनने में सफल हो जाते हैं...अब जब मात्र तीन सीटों वालों का इस मिली-जुली सरकार में इतना वर्चस्व होता है...तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि तीस से चालीस सीटों वालों का क्या रुतबा होता होगा...शायद इसीलिए टाइम-टाइम पर अमर सिंह, लालू प्रसाद जैसे तीस-चालीस सीटों वाले नेता कांग्रेस को हड़काते रहते हैं...और बार-बार सोनिया गांधी को अहसास दिलाते रहते हैं कि...उनकी इन्हीं तीस-चालीस सीटों की वजह से ही यूपीए सरकार खडी है...और सत्ता में कायम है...यही हाल दूसरी तरफ़ भाजपा का भी है...कभी शिवसेना से डांट खाती है...तो कभी जनदा दल(यूनीइटिड) से...अब बेचारी दोनों पार्टियां जाएं तो जाएं कहां...दोनों को सत्ता का सुख भी भोगना है...और एक-दूसरे की हार भी देखनी है...अब दोनों चीज़ें चाहिए तो अमर सिंह जैसे बड़े नेताओं(जो बड़े हैं नहीं..लेकिन बड़े होने का अहसास सबको दिखाना जानते हैं) के थके हुए विचारों पर अमल तो करना ही पड़ेगा...अब ऐसी स्थिति में सबसे बड़े समीकरण और सभी गठबंधन वाली सरकारों के ख़ात्मे का आग़ाज़...शायद एक नये दौर से ही हो पायेगा...और शायद वो दौर शुरु होगा यूपीए और एनडीए के ख़ात्में से...शायद वो शुरु होगा कांग्रेस और भाजपा के बेजोड़ बंधन के साथ...कहना तो कठिन है ही...लेकिन अगर ऐसा हो जाए...तो पट भी आपकी और चित भी आपकी...ना सुनने पड़ेंगे चिरकुट नेताओं के ताने और ना ही सामना करना पड़ेगा...छोटे-मोटे नेताओं की छोटी-मोटी धमकियों का...मिले-जुले विचार शायद कर पायें देश की तरक्की...शायद सामने आये सांप्रदायिकता की सबसे बड़ी और अनोखी सौहार्द...फिर नेताओं की फालतू-बकवास वाली सभाओं का हो जाएगा बंटाधार और शायद तब हमारे सामने निकल कर आयेगी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को संभालने वाली एक ज़बरदस्त और काबिल सरकार...शायद इसी बदलाव का है हम सबको बेसब्री से इतंज़ार....यही है सबसे बड़ा समीकरण और शायद यहीं कहीं छुपा है हमारे भारत का भविष्य....

Friday, 20 March 2009

यूपी की चुनावी बयार...



सुश्री मायावती उर्फ़ बहनजी के नाम से प्रसिद्ध देश की पहली दलित मुख्यमंत्री का राज्य में अच्छा ख़ासा वर्चस्व कायम है...बहनजी को चाहे दलितों की मसीहा कहा जाता हो...लेकिन कब बहनजी दुर्गा से चंडी का रूप अख्तियार कर लेती हैं...इसका तो किसी को अंदाज़ा भी नहीं है...2007 यूपी विधानसभा चुनावों में बहुमत से आयी बसपा सरकार ने सबसे पहले प्रदेश भर में फै़ले भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का संकल्प लिया...जिसके तहत धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में सख्ती का माहौल छा गया...बड़े माफियाओं की दुकानों पर तो जैसे ताले ही लग गये हों...प्रदेश के कई कुख्यात अपराधी या तो मारे गये या तो पकड़े गये...और जो पुलिस के हथे नहीं चढ़ सके...वे प्रदेश छोड़कर ही भाग उठे...हालांकि प्रदेश में बढ़ते गुण्डाराज को कम करने में तो माया की हर एक कोशिश कामयाब रही...लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उठे बसपाई नारे धरे के धरे ही रह गये...जो स्थिति बहनजी की सरकार से पहले थी...वे आज भी क़ायम है...जहां एक और भ्रष्टाचार अभी भी अपनी चरम सीमा पर था...वहीं चारों और मंदी अपने पैर पसार रही थी...इन्हीं सब कारणों के चलते जनता तो मानो जैसे झुलस ही उठी हो...हाल ही में हुए किसान आन्दोलन ने जहां एक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्रोध के स्वरों को व्यापक किया..तो वहीं इसका परिणाम प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी देखने को मिला...प्रदेश के पूर्वी भाग में भी आन्दोलन का असर देखने को मिला...प्रदेश की गन्ना मिलें तो मानो जैसे जंग की चपेट में आ गयी हों...मिलों को देख ऐसा लगता था कि जैसे सदियों से मिलों में कोई काम ना हुआ हो...कुछ समय बाद जब किसानों का आन्दोलन थमा...तो अपराध ने अपने पैर फिर से फ़ैलाने शुरु किये...कई खूनी रंजिशों ने समाज में अपनी जगह बनायी...और अपराध ने प्रदेश को अपने रंग में एक बार फिर से रंग डाला...औरैया इंजीनियर हत्याकाण्ड की गूंज तो दिल्ली तक भी गयी...वहीं आरूषी हत्याकाण्ड तो कई महीनों तक राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में छाया रहा...धीरे-धीरे समय बीता तो सभी मामले शान्त भी हुए...पर अपराध ने कम होने का नाम ना लिया..आखिरकार में यूपी के इतिहास के काले पन्ने में दर्ज़ एक ऐसा मुद्दा फिर से उठा...जिसके साथ शुऱु हुई पंद्रहवीं लोकसभा की चुनावी बयार...कल्याण सिंह जो आजतक हिन्दू होने के बुलन्द नारे लगाया करते थे...वे आज अमर सिंह के साथ इमामबाड़ों की ख़ाक़ छान रहे हैं...बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह के सपा में शामिल होने से...कांग्रेस को काफ़ी चोट पहुंची और उसने भी अपनी तारणहार सपा पार्टी को पीठ दिखानी शुरु कर डाली...चुनावों का मौसम तो शुरु हो ही चुका था...तो अब क्या...बारी थी दलबदलुओं की...पिछले पांच सालों से अपने दुखों को समेटे कूद पड़े चुनावी गलियारों में...और तोड़ डाली पूरानी दोस्ती और बना डाले नये यार...अब चाहे चुनाव जीते या ना जीते...लेकिन अपनी पूराने साथियों को तो हार का मूंह दिखाना ही दिखाना है...
पंद्रहवीं लोकसभा चुवानों की तारीखों के साथ-साथ आचार संहिता भी लागू हुई...अब खेल शुरु हुआ वोटरों को लुभाने का...तो कहीं नोट बटें...तो कहीं सांप्रदायिक नारों की हुई बौछार...राजनीति में उभरते एक और गांधी ने शायद ये दिखाने की कोशिश की वे अपने साथ-साथ भारत का इतिहास भी लेकर चलते हैं...पंजे से गले तक पहुंचने वाले ये युवा कुछ अलग मिजाज़ के हैं...कहते हैं हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए वे सबसे आगे खड़े हैं...लेकिन हिन्दू धर्म असुरक्षित कब हुआ...इस सवाल के सामने वे नतमस्तक होते दिखे...वरूण गांधी को शायद लग रहा होगा की उनके ये भड़काऊ भाषण उन्हें आगामी लोकसभा चुनावों में पीलीभीत सीट पर आसीन करवायेंगे...अब चाहे धर्मनिरपेक्ष नेता वो बन पाये ना बन पाये...लेकिन चर्चित नेता बनने की चाहत तो उनकी पूरी हो ही गयी है...आगामी लोकसभा चुनावों के लिए यूपी में जहां सपा-बसपा में इस बार कांटे की टक्कर होने वाली है...तो वहीं देश की सबसे बड़ी पार्टियां अपनी ज़मीन तलाशने में एक बार फिर से जुट गयी हैं...भाजपा में इस बार मायूसी का माहौल आराम से देखने को मिल रहा है...जहां वाजपेयी जी की कमीं टंडन जी पूरी करने की तमन्ना रखते हैं...तो वहीं बॉलीवुड सुपर स्टार को सुप्रीप कोर्ट की हरी झंडी मिलने के इंतज़ार ने व्याकुल कर रखा है...पूर्वांचल के कदावर नेता यानि हिन्दूवादी योगी आदित्यनाथ हालांकि ऊपरी तौर पर गोरखपुर से इस बार भी अपनी जीत सुनिश्तिच करने का परचम लहरा चुके हैं...लेकिन कहीं ना कहीं सपा के मनोज कार्ड ने उन्हें परेशान अवश्य कर रखा है...इन्हीं सब के बीच दलितों की मसीहा बहनजी भी विधानसभा की तरह लोकसभा में भी अपनी पार्टी का भविष्य देख रही हैं..और मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने का सपना साकार करने की जद्दोजहद में जुटी गयी हैं..यूपी की इस चुनावी बयार में कौन कहां बाज़ी मार पायेगा और कौन कहां अपनी ज़मानत ज़प्त कराएगा...इसका इंतज़ार तो हर किसी को है...