Wednesday, 8 April 2009

धुंधली यादों से कमज़ोर नज़रों तक...

दिल का एक छोटा सा कोना हज़ारों में,
ढूंढने निकले प्यार का खिलौना बाज़ारों में.

पहुंचे इश्क की दुकान में, अब क्या पड़ गये सोच में,
प्यार हुआ इक़रार हुआ, फ़िर शुरु इंतज़ार हुआ,

बड़े ही कोमल पेरों से आती छम-छम की आवाज़ ने,
घायल कर दिया दिल को बीच मझधार में.

सोचा घायल हुआ तो शायर भी होगा,
लेकिन शायरी निकल गयी भरे बाज़ार में.

लफ्ज़ों से नहीं मिले मिसरे,
हो गये हमारे भी सभी ख़्वाब भूले और बिसरे.

सच थे सभी सपने, अफ़सोस हुआ तो हकीकत पर,
कुछ था समझा कुछ ओर ही पाया, खो गया कहीं ना कहीं अपना भी साया.

अब तो यादें भी हो चली हैं धुंधली,
बस फर्क बचा है तो वो नज़रों में है, बस इन्हीं कम्बख़्त नज़रों में...

2 comments:

Manuj Mehta said...

interesting. you have potrayed the thoughts very well.

gagan said...

Thanx sir....